कह न सका जो कहना था
कह न सका जो कहना था
समय की चंचल धारा में, संग संग हमको बहना था।
सुख मिलता या दुख चाहे, मिलकर हमको सहना था।
संकोची मन की शंकावश, कह न सका जो कहना था॥
प्रेम वल्लरी कोमल किसलय, पल-पल हमको छूना था।
आशाओं के बाँध हिंडोला, नित नित नभ को छूना था।
उच्छ्वासों की उष्ण छुअन से, हृदय झंकृत करना था।
अनहद नाद जगा हृदय में, राग श्रवण भी करना था।
संकोची मन की शंकावश, कह न सका जो कहना था॥
निशा दिवा कर-मधुर-कल्पना, नवल जगत संग रचना था।
झंझावातों के कष्टों से, धैर्य धारकर बचना था।
कर्मभूमि पर सत्कर्मों से, बनना अद्भुत गहना था।
संकोची मन की शंकावश, कह न सका जो कहना था।