केवल राम जुहारी है
केवल राम जुहारी है
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उम्मीदों की पगडंडी पर
केवल राम जुहारी है।
आश्वासन के बौने चेहरे
आरोपों के साये में,
शब्दों के राडार जुड़ गये
अपने और पराये में,
षड्यंत्रों की नकदी जारी
सुख की अभी उधारी है।
कर्तव्यों की आँखों में बस
भाषण वाले लश्कर हैं,
अधिकारों की चीख समेटे
चुप्पी के सब अक्षर हैं
वर्तमान में संघर्षों का
हर चाणक्य मदारी है।
संदेहों के कैलेंडर पर
व्याकुल सब तारीखें हैं,
संवेदन का अक्खड़पन है
अर्थहीन सब चीखें हैं
फिर संयम का गला पकड़कर
बैठा समय जुआरी है।
