कच्ची अम्बियां और अप्रैल
कच्ची अम्बियां और अप्रैल
मेरे प्यार अप्रैल के महीने एक बात सुनो,
मुझे तुमसे आज कुछ कहना है, ज़रा ठहरो!
इस पूरे महीने मैंने झेली कई सारी परेशानी,
हुई मेरी ऐसी की तैसी की याद आ गई नानी!
कभी मूड ठीक रहा तो कभी नासाज हुई,
कभी आई पड़ोसन तो पूरी शाम बर्बाद हुई!
बदलते मौसम ने मिज़ाज़ बदलकर रख दिया,
कुछ खाया ना जाए गर्मी में बस पानी ही पीया!
अब कौन हिसाब रखे कि कब गया अप्रैल ,
और कैलंडर में कब यूँ बदल गई तारीख !
अप्रैल के गरम महीने तुम अब जा रहे हो,
जाते जाते दे गए हमको एक अच्छी सीख!
कि, कभी मनाओ खुशियाँ बैसाखी में,
तो कभी आम उगेरो आम की गाछी में!
सबको ही तूमने दिया प्यार और दुलार
अब सब करेंगे तुम्हारा जाते हुए सत्कार!
डियर अप्रैल तुम अगले बरस फिर आना
अपने संग कच्ची अम्बियां बाँधकर ले आना,
एक गठरी में कसकर सब बाँधकर ले आना,
गर्मी बहुत है सो लस्सी पीना और पिलाना!
तपती दुपहरी ने परिवार को सूत्र में बांधा है,
कि तरबूज खरबूजा सबने मिलकर खाया है!
