कभी खुशी कभी गम
कभी खुशी कभी गम
जिंदगी की दो पहिया है खुशी और गम।
खुशी में खो जाना और गम में गुम हो जाना यही तो है जीवन।
जिंदगी आसान नहीं होती है
उसे आसान बनाना पड़ता है।
कुछ अंदाज से और कुछ नज़र अंदाज से।
जिंदगी में खुशी और दुख की बहार लगी रहती है
ना कोई कम ना कोई ज्यादा,
बस यह हमारी गलत फमही होती है
जो हम खुश में ज्यादा खुश हो जाते हैं
गम में ज्यादा दुखी हो जाते हैं।
बात नहीं है यह किसी की जज़्बात की,
यह तो बात है हर किसकी सोच की,
जिंदगी की हर रास्ता में हमको
दो मंजिल मिलती हैं
एक कहती है सब कुछ भाग्य पर छोड़ दो और
एक कहती है अपनी भाग्य खुद लिख दो।
भाग्य पर भरोसा करने वाले
कभी खुश नहीं रह सकते ,
एक तरफ अपनी भाग्य खुद बनाने वाले
को कभी दुख नहीं हो सकती है।
भाग्य पर भरोसा करना बुरी बात नहीं होती पर
भाग्य भरोसा करके बैठे रहना भी
अच्छी बात नहीं होती है।
अपने भाग्य खुद लिखने वाले
जानते हैं कि जिंदगी उनकी इंतेहा लेगी
लेकिन फिर भी उनकी लड़ना है
मुस्खिलें और मंजिल के रास्ते
उसको बहुत ठोकर खाना पड़ेगा
पर उसे कभी हार नहीं मानना है।
अंत में भाग्य पर भरोसा करने वाले ज़िंदगी को
कोसते रहते हैं और
अपनी भाग्य खुद लिखने वाले हार को भी
हार मानने पर मजबूर कर देते हैं।
सबके लिए परिस्थिति बराबर एक जैसे ही होती है
पर नज़रिया अलग अलग
कुछ कर गुजर ने को भी आसान नहीं होती है
लेकिन वह ज़िंदगी ही क्या है जिसमे चुनती नहीं हो ।
हिम्मत के साथ हर कदम उठाना पड़ता है और
हंस हंस कर गम को सेहना पड़ता है।
आखिर में जीत की स्वाद मिलती है।
इसलिए कहते हैं,
डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
