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सागर जी

Others

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सागर जी

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कैसे हो जाते हैं !

कैसे हो जाते हैं !

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कैसे हो जाते हैं,लोग ऐसे ।

अंदर कुछ और, बाहर कुछ ऐसे ।।

हंसते हैं बातों पर, या मुझ पर ।

अंदर कुछ और, बाहर कुछ ऐसे ।।


बात यूं करते हैं, जैसे मेरे अज़ीज़ ।

जताते, जैसे बनकर आए नसीब ।।

अंदर कुछ और..........


क्या मिलता बातों से पर, करते हैं ।

मेरे मन में दीमक बन रहते हैं ।।

अंदर कुछ और.........


बचना चाहा, पर आदत से मजबूर ।

मुज़रिम बना दिया, था बेकसूर ।।

अंदर कुछ और..........


ऐसे लोगों से बचके रहना वैसे ।

हो चाहे जैसे, समझो इनको ऐसे ।।

अंदर कुछ और, बाहर कुछ ऐसे ।।


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