काश!
काश!
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जाने कितने काश ?
दिल में लिये
भटकता रहता है मन,
काश ऐसा होता
काश वैसा होता
इसी काश की
मृग-मरीचिका में,
खो देता है वो
अपनी मुट्ठी में भरा
नन्हा सा आकाश भी..