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नीलम पारीक

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5.0  

नीलम पारीक

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काश!

काश!

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जाने कितने काश ?

दिल में लिये

भटकता रहता है मन,

काश ऐसा होता

काश वैसा होता


इसी काश की

मृग-मरीचिका में,

खो देता है वो

अपनी मुट्ठी में भरा

नन्हा सा आकाश भी..


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