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sonu santosh bhatt

Children Stories

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sonu santosh bhatt

Children Stories

कांटों भरी जिंदगी

कांटों भरी जिंदगी

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तितली नही जानती है की वह उड़ रही है किधर को

वो वहीं को जाती है फूलों की खुशबू हो जिधर को।

वह अमुक प्राणी है जो कह नही पाती अपनी बात

उड़ती बस उड़ती ही जाती है, दिन हो या रात

किसी को नही पता कि वो क्या चाहती है

न ही किसी को खबर है कि वो क्या चाहती है

फिर भी खेलते है बच्चे, उसे पकड़ते फिरते है

भाग भाग कर बाग बगीचों में ही गिरते है।

जहां एक नही कितने जीवन हो जाते है नष्ट

खेलते खेलते उनके ना जाने

कितने जीवन हो जाते है नष्ट।

और खुद गिरकर सहन नही कर पाते है थोड़ा सा कष्ट

थोड़ी सी चोट में सहन नही कर पाते है कष्ट

और रोते है, चीखते है, चिल्लाते है

उनकी ये चिल्लाहट सुनकर

माँ बाप भी उनके झल्लाते है।

पर तितलियों की चीख कौन सुन पाता है।

और भी बाग से फूल तोड़ ले जाता है।

तितली पर नही, मगर माली पर तो तरस खाओ

अच्छा नही कर सकते तो, बुरा भी मत कर जाओ।

औरों को दुखी कर, क्यो तुम सुख पाते हो,

फूल नही उगा सकते तो कांटे क्यो बो जाते हो

अपने ही जीवन को काँटे भरी जिंदगी क्यो बनाते हो।



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