कान्हा
कान्हा
कान्हा ओ कान्हा तू छिपा है.. कहां...
कबसे तेरी राह निहारूँ..
कान्हा ओ कान्हा...
रोज़ तेरा श्रृंगार मेरे मन को लुभाये..
रोज़ अलग– अलग भोग लगाए..
कान्हा ओ कान्हा तू छिपा है.. कहा.
कबसे तेरी राह निहारूँ..
कान्हा तू है... कहा...
मंदिर में ढूंढू तुझे हर
जगह –जगह निहारु में..
पर तू कही दिखता नहीं.. मुझे..
ओ कान्हा ओ कान्हा तू छिपा है.. कहां.
कबसे तेरी राह निहारूँ..
कान्हा ओ कान्हा..
सबके दिल में जा बसा कान्हा..
अब में कैसे पुकारूँ..
मेरी भक्ति में ही तू छिपा है..
बस मेरे अपने दिल को समझाऊँ..
कान्हा ओ कान्हा..
मेरा कान्हा मेरे दिल में जा बसा..
यहीं धुन में रोज़ गाऊँ..
कान्हा ओ कान्हा..