कालिख
कालिख
ये शहर नया था पर यहां कुछ तो अपना सा था,
घिरे थे काले मेघ गगन में ये महीना शायद सावान का था,।।
बूंदों को झलकते देखा,
मैने आज जिंदगी को छू कर देखा,
पानी में उतरने को कागज़ की नाव तैयार है,
उम्मीदों से रोशन आज ये आसमान है,
ये शहर नया था पर यहां कुछ तो अपना सा था,
घिरे थे काले मेघ गगन में ये महीना शायद सावान का था,।।
गौरैया भी अपने घोंसले की ओर आ गई,
आसमान में बिजली भी अपनी हरकत दिखा गई,
दफ़्तर से लौटते हुए आलियान साहब अपनी नई बरसाती में थे,
नुक्कड़ पर चाय की दुकान पर वाजिद चाचा रोज़ी की खातिर लगभग पूरे भीग चुके थे,
ये शहर नया था पर यहां कुछ तो अपना सा था,
घिरे थे काले मेघ गगन में ये महीना शायद सावान का था,।।
किसी की छत से पानी टप टप चू रहा था,
अबकी ये सावन कुछ अलग सा लग रहा था,
वही आशी अम्मा के घर से सावन के गीत की आवाज सुनाई दी,
मेरी भी पिछले सावन की याद ताज़ा हो गई
ये शहर नया था पर यहां कुछ तो अपना सा था,
घिरे थे काले मेघ गगन में ये महीना शायद सावान का था,।।
हर ओर जिंदगी बिखरी थी,
वहीं किसी ने सारी रात रोज़ी रोटी की खातिर भीग कर बीता दी,
किसी के बचपने ने सावन में नाव उतारी है,
किसी के होठों पर सावन के गीत है तो किसी को कल की चिंता सता रही है,।।
ये शहर नया था पर यहां कुछ तो अपना सा था,
घिरे थे काले मेघ गगन में ये महीना शायद सावान का था,।।
आज विडंबना और किस्मत की जंग को मैने देखा,
शहर में चारो ओर मैने फरियाद और खैरात को बिकते देखा,
आज सावन से पहले मैने शहर में इंद्रधनुष देखा,
हर ओर सावन की दस्तक को मैने देखा,।।