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Pooja Agrawal

Others

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Pooja Agrawal

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कागज की नाव

कागज की नाव

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नन्हे नन्हे हाथों में वह लगती कितनी प्यारी थी

कभी गुलाबी, कभी नीली ,कभी हरी होती थी।

कुछ उमंग, कुछ उन्माद ,कुछ हंसी ,भरी होती थी

बारिश का पानी जब भर जाता, पोखर में, तालाब में,

रंगीन कागजों को कल्पना से बना देते, नाव के आकार में,

किसकी नाव सबसे पहले, कितनी दूर जाएगी?

कौन टिकेगी ज्यादा देर तक, किसकी डूब जाएगी?

अपनी जीत पर कैसे इतराते और हार पर दुखी हो जाते थे,

छोटे-छोटे खेल बचपन के कितना सुकून दिलाते थे,

पल में हंसते ,पल में रोते ,पल में भूल जाते थे,

अब पलों की परेशानियां कितना व्याकुलता लाती हैं,

छोटी सी नाकामयाबी हमको व्यथित कर जाती है,

बचपन की अठखेलियां को अगर आज ‌भी हम स्मरण करें,

वह अविस्मरणीय ,अतुलनीय ,अनूठी यादें

पाठ जिंदगी का बखूबी पढ़ाती हैं।

डूबने के डर से क्यों, हम नाव बनाना छोड़ दें

तूफान तो आते जाते हैं, क्यों तैरना छोड़ दे?

कभी नैया पार लगेगी ,कभी फंसेगी मझदार में

ईश्वर पर तू कर भरोसा ,जब पतवार उसके हाथ में

तेरी नैया बीच भंवर में कभी ना गोता खाएगी

संयम और हिम्मत से मंजिलों तक पहुंच जाएगी।



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