" ज्वलंत विषय "
" ज्वलंत विषय "
ज्वलंत विषय ही हमारी
प्रेरणा बनती है
कितने ही हम
उनसे मुंह मोड़ लें
पर उनके हथौड़ों
की चोट से हम
तिलमिलाने लगते हैं !
दूसरे विषयों पर
नजरें नहीं टिकती हैं ,
प्रयत्न भी अधूरा
हो जाता है !
हम लौटकर फिर
ज्वलंत विषयों के
साये में विचारने को
मजबूर हो जाते हैं ,
हम भला क्यों भूल
जाएँ "अश्वमेघ यज्ञ "के
"अश्व" को कोई
रोक लेता है ,
विजय का शंखनाद
जब गूंजने से डरता है !
यौध्याओं जो अपने
बाजुओं को मलते थे ,
झूठी दिलासा लोगों
को देते थे !!
सब तंत्र को सदा
अपने पास रखते थे ,
पर सब ने उनको
जान लिया ,
उनकी भावनाओं
को पहचान गया !
सब तंत्रों पर
"जनतंत्र "भारी पड़ा ,
और स्वयं वीर कहते थे
शिखंडी बनना पड़ा !!
भला अब कहें
इन विषय को छोड़
हम और विषयों
को छुएं कैसे ?
लाख मनाया
अपनों को
कुछ और लिखें
पर निगाहें और मष्तिष्क
ने हमें घसीटकर
ला खड़ा किया ,
और हमको कानों में
कह दिया --
"सब तंत्रों से भी
बढ़कर है "जनतंत्र "
यह सबित हो गया !!"
