जुनून
जुनून
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देखो दिल में ही रोज़ जुनून बहुत है
करने यारों दुश्मन के ख़ून बहुत है
टूटे उल्फ़त के घर फ़िर भी नफ़रत से
थामे रिश्तों के यार सूतून बहुत है
उल्फ़त की बारिश देख हुई यार कहाँ
नफ़रत का इस बार हुआ जून बहुत है
जो दें साथ ग़रीबों का देखो यारों
यार कहाँ अब अफ़लातून बहुत है
टूटे दिल को चैन मिले पढ़के ग़ज़लें जो
रोज़ पढ़े फ़िर भी है मजमून बहुत है
क़िस्मत साथ नहीं देती लेकिन मेरा
पाने को उसको यार जुनून बहुत है
उल्फ़त में चोट लगी ऐसी आज़म को
रोज़ लुटा दिल का यार सुकून बहुत है.
सूतून - बुनियादी खंभा या नींव
आज़म नैय्यर