ज़रीब
ज़रीब
1 min
308
**ज़रीब**
कभी कभी हो ही जाता,यूँ हादसा अज़ीब सा,
मेरे संग रूठ जाता, मेरा अपना नसीब सा |
दूर जिसे घेर लिया, है आंधी औ' तूफ़ान नें ,
वो कोई बिरछ नहीं, है वो आदमी ग़रीब सा |
सुबह से जो शाम तक, उठाके लाश फिरता है ,
वो तो कोई कंधा नहीं, है लगता सलीब सा |
जल्दी से जितनी, अंधेरी रात बीत जाए,
सुबह का उज़ाला होता, है उतना करीब सा |
हदबंदी कर लोग, भूमि को तो नापते हैं ,
नापे जो दिलों की दूरी, है कहाँ वो ज़रीब सा ?
--एस.दयाल सिंह--
