जो वर्षों पहले भिंगाया था
जो वर्षों पहले भिंगाया था
1 min
142
हम तकदीर के उस पन्नों से लड़ते है,
जो कभी हवा में उड़ जाता है,
कभी एक बूंद से गल जाता है
आज सूखी पड़ी ये रेत भी जिसे
धूप ने बनाया था,
इंतजार है उस खुशियों के
बरसात की
जो वर्षों पहले भिंगाया था ।
हम भटकते हुए मुसाफिर है ,
न रास्तों का पता न मंजिल का
कश्ती भटक रही सागर में
न पता किनारों का न साहिल का
कहां मिले वो पल भला जो
सितारों का सहर बनाया था
इंतजार है उस खुशियों के
बरसात की
जो वर्षों पहले भिंगाया था ।