जितना लिखूं कम पड़ जाए
जितना लिखूं कम पड़ जाए
मेरे भारत देश के लिए क्या लिखूं
जितना लिखूं कम पड़ जाए।
है जहाँ सत्य, अहिंसा, और दोहराते हैं नारे
जहाँ हथियार और दुश्मन भी हारे।
है जहाँ हर धर्म, भाषा में विविधता
जहाँ माता मानी जाती है हर बाला।
है जहाँ अंबर का उजाला और धरती है सोना
जहाँ दिवाली, होली, या ईद हर त्यौहार है अनोखा।
है जहाँ वीर शहीदों की वीरगाथा
जहाँ शान से तिरंगा है फहराता।
है जहाँ जियो और जीने दो का नारा
जहाँ विश्वशांति का हर कोई है संदेश फैलाता।
है जहाँ प्यारी सुबह, रंगीन शाम
जहाँ का हर दिन है बड़ा सुनहरा।
है जहाँ हर हिंदुस्तानी के मन मे विश्वास
जहाँ नहीं किसीको डर देश पर होने से क़ुर्बान।
है जहाँ बहते सागर में मिलती नदियाँ
जहाँ डाल पर बैठी गाना गाती है चिड़िया।
मेरे भारत देश के लिए क्या लिखूं
जितना लिखूं काम पड़ जाए।