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विनोद महर्षि'अप्रिय'

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विनोद महर्षि'अप्रिय'

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जिंदगी

जिंदगी

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चालें की जिंदगी भी अजीब है

ठिकाने पर लगे तो नसीब है

अक्सर ही हम मात खा जाते हैं

क्योंकि हम तदबीर से ग़रीब हैं।

प्यादे पर शक किया तो गुनाह है

ख़यानत भी तो अपने ही करते हैं

हुक्मरानों को क्या दोष दे हम

जब खुद ही होना चाहते फ़ना है।


शतरंज की चालों में खो गए कहीं

कि अपना दर भी याद अब ना रहा

क्या बताएं किसी को दर्द ए दास्तान

कि पल भर का भी यकीन ना रहा।

कि तुम्हें पाने की चाह इस कदर है

भटकता यह दिल अब दर दर है

तुम कहाँ खो गई अब ए जिंदगी

मात तू है तो फिर शह किधर है।।


रानी को पाने सैंकड़ो प्यादे लड़ते है

मगर पास तो कोई वज़ीर ही जाता है

अंतिम पल में वो भी फ़ना हो गया

मंज़िल तो अंत में बादशाह ही पाता है।

हम भी वो वज़ीर बने तेरे लिए मगर

शमशीर भी हमारी उस वक्त टूट गई

जब सोचा बहुत सी जिंदगी है अब

इस जीवन की डोर भी तब टूट गई।

जीवन में मात मिलना कोई खास नहीं

लग जाये चाल ठिकाने यह आस नहीं

पर रहमत उसकी तू क्या जाने ए यारा

मौत तब होती जब तू भी मेरे पास नहीं।।


जमाने के लाखों दर्द सीने में छुपाए है

अपनों ने ही खून के आँसू रुलाएं है

तू तो खैर एक राह है इस जीवन की

जी ली यह जिंदगी अब इससे बैर नहीं।।




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