ज़िंदगी तू ही बता
ज़िंदगी तू ही बता
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अनजानी ये डगर मंज़िल भी लापता
ले जा रही कहा? ज़िन्दगी तू ही बता
लेती हो हर मोड़ पर यूँ नया इम्तिहान
इतना क्यों इस मासूम को रही हो सता
सज़ा के जैसे है माँ से रहना बिछड़कर
न जाने वो कौनसी मुझसे हो गई है ख़ता
दूर हो जाती हैं मुश्किलें सोहबत में तेरी
जीने की वजह ही तुझसे है ऐसा राबता
रूठी थी ये तक़दीर ढूँढती रहती पहचान
बेशुमार मेरी ख़ुशियों का तुम ही हो पता