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AVINASH KUMAR

Others

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AVINASH KUMAR

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जिंदगी के दोराहे

जिंदगी के दोराहे

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जिंदगी के दोराहे को जी चुका हूँ मैं 

हाँ ,अपने वजूद को खो चुका हूँ मैं, 

बहुत निष्ठुर होती है सच की मंजिलें

मंजिलें क्या रास्तों को भी खो चुका हूँ मैं। 


बेबसी के आलम में मुसाफिरों सी जिंदगी, 

हाँ ,इस दुनिया का मुसाफिर बन गया हूँ मैं, 

सबसे छला गया अब खुद में ही समाया हूँ,

मैं किसी और का नहीं, बस अब अपना ही साया हूँ।


मंजिल मुझे बुलाती रही पर रास्तों ने धोखा दे दिया,

उड़ना ख़्वाहिश थी आसमाँ में, मुझको पिंजरे में कैद कर दिया,

किसी से गिला करके भी क्या फायदा जब मेरे पंखो को ही कुतर दिया,

मुझको जिंदगी के दोराहे पर खड़ा कर दिया।



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