जिज्ञासा
जिज्ञासा
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एक दिन बैठे बैठे खुद
से मिलने की तांक हुई ,
देखा जब आईने में
खुद से खुद की पहचान हुई,
बहुत गहराई में जब देखा
खुद की खुद से बात हुई,
खुद को और जानने की
मन में तीव्र आस हुई,
कौन हूं मैं ?
क्या अस्तित्व मेरा था?
खुद को ना पहचान पाई ,
अंदर, अंधेरा ही अंधेरा था।
खुद को जानने की इच्छा में
जिज्ञासा का घेरा था।
उसी जिज्ञासा को पूर्ण
पथ पर में चल पड़ी,
खुद को पहचानने की
मन में है जिज्ञासा बड़ी।
