जीवन की लाचारी
जीवन की लाचारी
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अस्त्र शस्त्र सब हार गए जीवन की लाचारी में
जीवन के इस धर्मयुद्ध में आँसू पोछ रहा हूँ मैं
जा तू अपना जीवन जी ले सपनों की फुलवारी में
छोड़ मुझे खुश रहने दे अपनी चार दिवारी में
तुझे तो अंबर छूना है हिमालय की चोटी से
मुझे तो जन्नत मिली नहीं इस जीवन लाचारी में
जग तुझको पत्थर समझेगा तेरे उछले सिक्कों से
मुझे इबादत करनी है अपने रूठे रिश्तो से
जा तू हंसता बसता रह सपनों की फुलवारी में
छोड़ मुझे खुश रहने दे अपनी चार दिवारी में
