जीवन की गगरी
जीवन की गगरी
कहीं किसी को पता नहीं
जीवन की गगरी कब फूटे।
सपने टंगे रहें खूँटी पे,
सारा मजमा पीछे छूटे।।।
कहीं किसी को पता नहीं
जीवन की गगरी कब फूटे।।।
कभी धूप खिले, कभी छाँव मिले
कभी उड़ती रहे बहारों में।
कभी मौज मनाये साहिल पे
कभी गोते खाये मझधारों में।।
जीवन ये बुलबुला पानी का
जाने ये बुलबुला कब फूटे।।।
कहीं किसी को पता नहीं
जीवन की गगरी कब फूटे।।।
जीवन के जो दो— पल है मिले
इन्हें हँसी खुशी में मेट दे तु।
सुख दुख दोनों भी सहने हैं
दोनों को संग में फेंट दे तु।।
हिम्मत ही है वो चोर सनम
दुख की गठरी को जो लूटे।।।
कहीं किसी को पता नहीं
जीवन की गगरी कब फूटे।।।
सपने टंगे रहे खूँटी पे,
सारा मजमा पीछे छूटे।।।
कहीं किसी को पता नहीं
जीवन की गगरी कब फूटे।।।
