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Shayra dr. Zeenat ahsaan

Others

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Shayra dr. Zeenat ahsaan

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झगड़े को न देते तूल

झगड़े को न देते तूल

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भारी बस्ता कड़क थे रूल

ऐसा था मेरा स्कूल

छुट्टी में भी खूब पढ़ाई

नहीं पढ़े तो पड़ी पिटाई

माफ़ नहीं थी कोई भी भूल

ऐसा था...


नई क्लास और नया था बस्ता

उबड़ खाबड़ इसका रास्ता

चलते थे उड़ती थी धूल

ऐसा था...


प्रेम भाव और भाईचारा

इसके आगे दुश्मन हारा

झगड़े को न देते तूल

ऐसा था...


याद बहुत आते है वो दिन

रह न पाते हम उनके बिन

खेल थे कितने ऊल जलुल

ऐसा था...


रोज़ नया ये सबक सिखाता

सबकी ये किस्मत चमकाता

मुश्किल इसको जाना भूल

ऐसा था...


साहित्याला गुण द्या
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