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Dr J P Baghel

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जब जब राम वरेंगे सीता

जब जब राम वरेंगे सीता

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जब-जब राम वरेंगे सीता 

लंकाधीश हरेंगे सीता।


वन में जन्म, मरण भी वन में 

वन का वास मिला जीवन में।


पिता विदेह नहीं सुधि तन की 

बूझो व्यथा सुता के मन की


सीता थी न कुलीन बिचारी 

राज-महल पाकर भी हारी।


राजमहल से वन पाएगी 

छल के साथ हरी जाएगी।


सोने की नगरी हो जिसकी 

वह परवाह करेगा किसकी।


कुल की लोक दुहाई देगा 

सीता पर ही प्रश्न उठेगा।


जब भी कहो परीक्षा देगी 

जहां रहेगी पीर सहेगी।


यहां राम की मर्यादा के 

होंगे लोग मगन गा गा के।


राजकुलों का वैर बेचारी 

झेलेगी वनवासी नारी।


जो भी हैं कुबेर के स्वामी 

रखते दृष्टि वनों पर कामी।


राजमहल में हो या वन में 

रहती है सीता बंधन में।


रेखा वही, वही सीमाएं 

घर घेरों में हैं सीताएं।


पग यदि घर के पार धरेंगी

सीता फिर-फिर दंड भरेंगी।

              


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