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Amit Kori

Children Stories

4.9  

Amit Kori

Children Stories

जब दादी मेरे साथ थीं

जब दादी मेरे साथ थीं

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सर्दियाँ गुदगुदाती थी,

शामें मलंग थी,

रातें निडर थी,

वो वक्त भी कुछ ऐसा ही था

जहाँ मैं रात की यादोँ में,


पूरा दिन गुज़ार दिया करता था,

दादी के क़िस्से और वो

ग़र्म चाय की प्याली,

न जानें हमने उसमें कितनी शामें

घोली होंगी ये वो शामें थीं

जब दादी मेरे साथ थीं।


बड़ी सुहानी रात थी,

दादी मेरे साथ थीं

ठंड कि सौग़ात थी,

क़िस्सों की बरसात थीं।


चाय की प्यास थी,

चुस्कियाँ हमारे साथ थीं

मौसम ने बरपाई थी,

उसकी शामत आयी थीं।


दिल में न कोई आस थी,

क्योंकि दादी मेरे साथ थीं।

सर्दियाँ चुभने लगी थीं,

शामें अनंत हो गयीं थी।


रातें ख़ौफ़ से भरी हुई थी

अकेलेपन की कराह दिन-रात

कानों में गूँजती सी रहती थी,


मानो जैसे बहरा बनाकर ही

दम लेंगी ये वो शामे थीं

जब दादी मेरे साथ नहीं थीं।


कँपकपाती रात थीं,

बस यादें मेरे साथ थी

दादी एक पास्ट थी,

भूली-बिसरि याद थी।


ठंड एक चुभन थी,

दिल में लगी अगन थी

आँसुओ की बरसात थी,

तकिये को सब याद थी।


सूझी हुई आँख थीं,

इनमें एक आस थी।

लेकिन....

ये न वो रात थी,

जिसमें दादी मेरे साथ थीं।


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