जानती हो
जानती हो
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जानती हो !
गाने और गुनगुनाने में फर्क होता है।
चाहे कच्चा हो या बिगड़ा हो
चाहे सुर मे हो या न हो
गाना हर कोई गा लेता है
पर गुनगुनाना सबके वश में नहीं होता।
जैसे इस वसंत को ही ले लो
इसे जी जाने और जीने में फर्क होता है।
वसंत को जो जीता है
उससे भँवरे बातें करते हैं
उससे दूर उसकी प्रेमिका की
खबरें उस तक लाते हैं।
और ठहरे बस जी जाने वाले
अपने तन मन में ताले डालने वाले
दिन गिनते के कब गुजरे वसंत ये
अब नहीं झेला जाता,
उनके कठोर दिलों मे पड़ रहे छाले ।
जानती हो !
झेलने और अपनाने में भी फर्क होता है।
