इश्क़ का खेल
इश्क़ का खेल
अजीब खेल है इश्क़ का
कितने उनके किरदार है
फिर भी मिलती हार है
क्यों होता दिल तार तार है
क्यों आँसू ही देता हर बार है
राधा बनना इतना आसान नहीं था
टूट के श्याम को चाहना
प्रेम में खुद को खोना
और फिर किसी और का होना
श्याम के संग नाम जोड़ के भी
श्याम को पा ना सकी...
चाह के भी उस गली जा ना सकी
प्रेयसी बन के रह गई सदा।
मीरा बनना भी कहां आसान था
सब छोड़ कर श्याम को पा लिया
एक-तार में श्याम को गा लिया
इश्क़ में विष को पी लिया..
इबादत में श्याम को जी लिया
कहां आसान था रुक्मणि बनना भी
सब कुछ पा लिया फिर भी अकेली रही
श्याम तो मिल गया मगर
उसकी हो ना सकी...
पत्नी तो बन गई पर प्रेम पा ना सकी
श्याम का जीवन भी कहां आसान था
दिल जिस पर कुरबान था
वहां नसीब भी मजबूर था...
कहलाया राधा का श्याम मगर
राधा से ही दूर था।
इश्क़ तेरा खेल निराला
जिसने प्रेम करना सिखाया जग को
तुम ने तो तड़पाया उस रब को भी।
