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VIVEK ROUSHAN

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VIVEK ROUSHAN

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इस विशाल धरती पर

इस विशाल धरती पर

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इस विशाल धरती पर

नीले-काले आसमानों के नीचे

जहाँ पानी ही पानी है

जंगल हीं जंगल है

पहाड़ हीं पहाड़ है

जहाँ पेड़-पौधे असंख्य हैं

जीव-जंतु असंख्य है

दिन निश्चित है

रात निश्चित है

जन्म निश्चित है

मृत्यु निश्चित है

वहाँ रहता है एक आदमी

जिसे प्यार, अपनापन, भाईचारा

जैसे शब्द पसंद नहीं

जिसके जीवन में कुछ भी निश्चित नहीं है

सिवाए जन्म और मृत्यु के

वो अनिश्चितताओं में निश्चितता

ढूँढता रहता है

जन्म लेने के बाद भूल

जाता है की मृत्यु

बाहें फैलाये खड़ी है

इन सब से परे

वो अपनी एक दुनियाँ बनाता रहता है

कभी खुद मरता है कभी

दूसरों को मारता रहता है


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