इंसानियत अब भी जिंदा है
इंसानियत अब भी जिंदा है
मुझे याद है, 27 जनवरी 2025 की वो दोपहर थी, जब मैं रोज़ की तरह अपने ऑफिस से अल्पाहार (दोपहर के भोजन) के लिए बाहर निकला था।
आदतन, मैं अपनी छाछ की बोतल लेकर ही निकलता था और चलते-चलते आसपास की हलचल को गौर से देखता, समझता और जीवन के छोटे-छोटे अनुभवों को समेटता चला जाता।
कोई पैदल सफर करता, तो कोई अपनी चार पहियों की गाड़ी में इतराते हुए अपने गंतव्य की ओर बढ़ता।
मेरी भी एक तयशुदा मंज़िल थी—एक चौक, जहां सड़क किनारे एक छोटी-सी दुकान थी। दुकानदार ने वहां बैठने के लिए कुछ बेंचें लगा रखी थीं, और मैं अक्सर वहीं बैठकर अपने चारों ओर की दुनिया को निहारा करता था। उस दिन भी, मैंने दुकान से बिस्कुट का एक पैकेट लिया और धीरे-धीरे खाते हुए इधर-उधर देखने लगा।
तभी मेरी नज़र एक छोटे से बच्चे पर पड़ी, जो सड़क के किनारे एक पेड़ की छांव में अपनी माँ के साथ बैठा था। उसकी उम्र 2 से 3 साल के बीच में रही होगी। जहां वो बैठे थे, पास ही एक पानीपुरी वाले ने (पुचका) का ठेला लगाया था, और वह बच्चा बार-बार उठकर ठेले के पास जाता, और पास ही खड़े एक खंभे को पकड़कर टकटकी लगाए पानीपुरी को देखता— मानो वह बहुत भूखा हो।
उसकी कमजोर माँ उसे बार-बार पकड़कर वापस अपनी गोद में खींच लाती, लेकिन बच्चा बार-बार उसका हाथ छुड़ाकर फिर से ठेले के पास जाकर खड़ा हो जाता।
उसकी यह हरकतें देखकर मेरा मन अतीत में लौट गया। मेरी माँ अक्सर बताया करती थीं कि मेरे जन्म के बाद हमारे परिवार की हालत इतनी खराब हो गई थी कि हमें महीनों तक रेलवे स्टेशन पर शरण लेनी पड़ी थी। खाने के लिए एक वक्त की रोटी भी बड़ी मुश्किल से मिलती थी, और ऐसे में माँ मुझे दूध कैसे पिलातीं— इस दर्द ने उन्हें जीवनभर नहीं छोड़ा।
उन्होंने मुझे वह जगह भी दिखाई थी, जहां अपने जीवन के सबसे कठिन दिन बिताए थे। कई रातें उन्होंने सिर्फ पानी पीकर ही गुज़ारी थीं, और फटे हुए कपड़ों में ठंड से कांपते हुए रातें बिताई थीं।
उन यादों में खोकर मेरी आंखें नम हो गईं, लेकिन मैं फिर वर्तमान में लौटा आया और तुरंत दुकान से कुछ बिस्कुट के पैकेट खरीदे। मैंने धीरे से वह पैकेट उस बच्चे के हाथ में थमा दिये। उसने मुस्कुराकर मेरी ओर देखा, फिर अपनी छोटी-छोटी उंगलियों से हाथ हिलाया—जैसे बिना शब्दों के ही धन्यवाद कह रहा हो।
जाते-जाते मैंने एक बार मुड़कर पीछे देखा। वह बच्चा अब भी मुस्कुरा रहा था, उसकी आंखों में अब भी वही चमक थी। शायद वह मुझे नहीं, बल्कि उस छोटे से एहसास की तरफ देख रहा था, जो इंसानियत को अब भी जिंदा रखती है।
मेरी माता श्री ने हमेशा हमें सिखाया है कि जब कभी आपको किसी की भी मदद करने का सहयोग प्राप्त हो तो उससे कभी पीछे मत हटना।। माता श्री ने हमें हमेशा अच्छे संस्कार दिए हैं, नतीजतन हमारा मन हमेशा सेवा भाव की तरफ ही झुका रहता है।।
