हवाओं का रूख
हवाओं का रूख
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चौपालें सज रहीं हैं,
राजनीति हो रही है ,
इस अंधाधुंध भीड़ में,
लोगों का हुजूम बहक रहा है।
शायद उन्हें याद हो आया है .....
अपनी आवारगी का,
अपनी हशमतो का,
फिर भी बेफितूर,
बेफिक्र, बेबाक, बेबस,
लाचार,
किन्तु अपनी ज़िंदादिली से बेखौफ़
वे,
हवाओं का रूख बदल रहें है,
और जी रहें है ....।।
