हत्यारे
हत्यारे
केवल प्राणांत नहीं मरना,हम मन में तनिक विचारें,
वैचारिक आघात अधिक हैं घातक, बड़े क्रूर ये हत्यारे।
घाव तो शारीरिक यातना के , लेते कुछ समय मगर भर जाते हैं,
पर घाव तो व्यंग्य-विचारोंं के , रहकर ताउम्र हमें सतत तड़पाते हैं।
हो जाता अंत जिनके जीवन का, हो कष्टमुक्त सो चैन से जाते हैं,
जो बच जाते इस मृत्युलोक में, फिर उनकी याद में तड़पते जाते हैं।
जो चला गया वह मुक्त हुआ, भुगतते रहते जो बच गए विचारे।
केवल प्राणांत नहीं मरना...।
प्राणोत्सर्ग सत्य-न्याय हित कर , बलिदानी अमर हो जाता है,
त्यागी-पुरुषार्थ वह वीर धरा पर , एक सुन्दर मिसाल दे जाता है।
चाहे कैसा या कोई कारण हो , पर न्याय न जो कर पाता है,
अपयश के दु:ख को भोग सतत, अनगिनत बार मर जाता है।
झेलता मृत्यु की पीड़ा है वह अनंत, करते परिहास उसका सारे।
केवल प्राणांत नहीं मरना....।
हम करें सतत ऐसे प्रयास , रहें हम सब मिलकर सुखी सारे
निज सुख-दुख समझें दूजे का,सब हमको - हम सबको प्यारे।
नहीं लेकर कुछ भी आए थे , और न ही लेकर जाएंगे हम सारे,
मन-वचन-कर्म से सब सच्चे हों , अनुकरणीय हों आचरण हमारे।
सब कड़वी यादें भूलकर कल की, आगामी स्वर्णिम भविष्य संवारें।
केवल प्राणांत नहीं मरना...।