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अनिल कुमार गुप्ता अंजुम

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अनिल कुमार गुप्ता अंजुम

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हिंदी की पावन छाँव

हिंदी की पावन छाँव

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हिन्दी की पावन छाँव तले मैं आराम पाता हूँ

हिन्दी में लिखता हूँ, हिन्दी पर इतराता हूँ

हिन्दी को बिछौना बनाकर, खुद को संवार पाता हूँ

हिन्दी के गीत और ग़ज़ल गुनगुनाता हूँ

हिन्दी की पावन छाँव तले मैं सुकूँ पाता हूँ

हिंदी को समर्पित हूँ, हिंदी पर गर्वित हूँ

जीवन के सारे राग, हिंदी में गुनगुनाता हूँ

हिंदी के आँचल तले, खुद को संवार पाता हूँ

अन्य भाषाओं को मैं अपने में समा जाता हूँ

हिंदी की पावनता के मैं गीत गुनगुनाता हूँ

बच्चन को याद करता हूँ, गुप्त को भी याद करता हूँ

महादेवी वर्मा को याद करता हूँ, पन्त को भी गुनगुनाता हूँ

शायरों की महफ़िल में खुद को सबके करीब पाता हूँ

हिंदी की पावनता के मैं गीत गुनगुनाता हूँ

कविता हो, कहानी हो, सभी भाते हैं मुझे

हिंदी के सौंदर्य से मैं अभिभूत हो जाता हूँ

हिन्दी की पावन छाँव तले मैं आराम पाता हूँ

हिन्दी में लिखता हूँ, हिन्दी पर इतराता हूँ

हिन्दी को बिछौना बनाकर, खुद को संवार पाता हूँ

हिन्दी के गीत और ग़ज़ल गुनगुनाता हूँ।


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