हॅ॑से-रोते, रोते
हॅ॑से-रोते, रोते
साथ जा रहा था अनुज संग मैं ,पहुॅ॑चना था अति जरूरी
वार्षिक परीक्षा थी उसकी, साधना की थी साल भर पूरी।
बस स्टैण्ड पर पहुंचे जब तक, तब तक जा चुकीं बसें सारी
एक बस और आने की संभावना है, बलवती आशा अधूरी।
था नहीं विकल्प कुछ भी, प्रतीक्षा करना था अपनी मजबूरी
शाम के सात बजे तो पहुॅ॑चे थे, और कट गयी थी वह रात पूरी।
मानसिक वेदना से पीड़ित ,और रात भर ही हम दोनों जगे थे
सुबह के थे चार बजे तब, जब देख एक बस दोनों तेजी से भागे थे।
जाना था उस बस को भी उधर ही ,जिधर तो थी मंजिल हमारी
वेदना तो कुछ घटी पर , अब समय पर पहुॅ॑चने की थी बात सारी।
सुरक्षित शीघ्रता से पहुॅ॑च जाएं, प्रभु से थी यही विनती हमारी
मन ही मन में याद थे करते,प्रभु परीक्षा मेरी नहीं अब है तुम्हारी।
मन ही मन विनती में बीती, एक घण्टे की यात्रा हमारी
बीतना तब एक-एक पल का, हो रहा था दोनों को भारी।
हाल रोने सा हो चुका था ,अब आ गयी मंजिल भी हमारी
मुस्कराहट आई तब कहीं ,जान में जान आई थी हमारी।
शुक्रिया प्रभु का किया,हम दोनों ने मिलकर बारम्बार
अभी तक था चेहरे पे पतझड़ ,कहीं आई थी अब बहार।
रात थी जाग कर गुजारी, परीक्षा अच्छी ही हुई थी
भाव थे जो थे रुदन के,बदल अब हॅ॑सी के हो गये थे।