हेम कविताएं
हेम कविताएं
इन फूलों पर बैठी तितली, भौंरों से नित राग लड़ाती है।
भौंरे ने भी इनसे चूसा है कुछ,ये भी इनसे कुछ खाती है।
फूल मुग्ध रंग - रस पे अपने ,भौंरे की प्यास बुझ जाती है।
रंग - बिरंगे पंखों वाली तितली,अपनी मस्ती में मदमाती है।
मधुमक्खियों का गुंजार घना तब,फूलों का रस जब लेता है।
परहित धर्मी वह टोला उसी रस का, शहद बना तब देता है।
रस एक चाहत अनेक है, हर कोई चाहत में इसे बदलाता है।
तभी तो इस रंग - बिरंगी दुनियां में वैविध्य नजर में आता है।
सत , रज, तम के घाटों पर ये तीनों,अपना धर्म निभाते हैं।
रज धर्मी तितलियां कुनबा बढ़ाए,भंवरे तम में मदमाते हैं।
सत धर्मी मधुमक्खियों के टोले,कर्मयोगी का सा कमाते हैं।
जने औलाद - शहद ,खुद के साथ औरों को भी खिलाते हैं।