हे राम आँखे खोलो
हे राम आँखे खोलो
राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं
हे राम आँखें खोलो
बहुत द्रवित दिखते हैं राम आज,
सब मन संभ्रम अंधियारा छाया।
सब के सब इक दूजे के दुश्मन हुए,
झूठ प्रपंच का सब पर साया छाया।।
नहीं दिखता लक्ष्मण सरीखा भाई कोई,
भरत प्रतिज्ञा के भी न अब दर्शन होते।
सब यहाँ भाई भाई के दुश्मन बन बैठे,
न कोई शत्रुघ्न बन खड़े जंक्शन होते।।
खूब सजे हैं गली गली आलीशान मन्दिर,
सीता बैठ बाहर अपना सुरक्षा कवच खोजे।
कहीं शबरी बेर लिए प्रतीक्षा राम की करे,
राम विवश दुखियारे बन व्यर्थ अपने आंसू खोते।
चिंता हर्ता दुःख हर्ता चिंता ग्रस्त हुए हैं,
हृदय पहनी बनफूल माला भी बेनूर हुई है।
हे राम! हे राम !अब तो अपनी आँखें खोलो,
देख धरा तेरी पे मुसीबत फिर मगरूर हुई है।।
