हाल ऐ जिंदगी
हाल ऐ जिंदगी


ऐ जिंदगी
क्यों तेरी मेरी बनती नहीं
मुझे तलाश शांति की और
तू दिन भर दौड़ाती है मुझे
जितना कस कर पकड़ना चाहूँ
हाथों से मेरे फिसल जाती है तू
तूझे शौक है इम्तिहान लेने का
तो मुझे भी कुछ पूछना है तुझे
यूँ तो तुम मिलती नहीं, इसलिए
ऐ जिंदगी
आज शाम चाय पर बुलाया है तुझे
कुछ देर गपशप करेंगे बैठकर
दिल की बात करेंगे खुलकर
औरों पर तो हो तुम मेहरबान
तो क्यों रहती हो मुझसे खफा
ऐ जिंदगी
आ बैठ अब बता मुझे
तुम ऐसी क्यों हो
सुबह शाम रंग बदलती क्यों हो
कभी धूप कभी छाँव ,रोज़ नया दाँव
मुझे इतना आजमाती क्यों हो
मुसीबतों से नहलाती क्यों हो
ख़ुशियाँ कम और उम्मीद भी थोड़ी
फिर भी हँसकर झेल जाती हूँ सब
सब्र देख मेरा, कब तक आजमायेगी
हौसले ना मेरे तोड़ पाऔगी
ऐ जिंदगी
आज मैने बुलाया है
कल तू खुशी से, बिना इम्तिहान के
मुझे चाय पर बुलायेगी।।