"" हादसा""(44)
"" हादसा""(44)
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ये हादसों का दौर है
ये हादसों का दौर।
गर ना हो जीवन में
तो हादसों से,सबक लेगा कौन?
जब शरीर, होता है अशक्त
विवेक होता है मन्द,
तब नियंत्रण, छूटने है लगता
हादसे घटित ,हो जाते हैं चन्द।
भाग्य कभी,देता है साथ
कभी देता है दगा,
कर्म सदैव ,गतिशील रखता
परछाई की,मानिंद है रहता।
अपनों की दुआ
शुभचिंतकों का आशीष,
हादसों की करते,कम तासीर
पुनर्जन्म का करते,मार्ग प्रशस्त।
मंदिरों की घण्टी
मस्जिदों की अज़ान,
हादसों से भरा,जीवन सारा
खुशी ग़म को देते पहचान। ।
