गुनगुनाता बचपन
गुनगुनाता बचपन
सूरज की पहली किरण सा
माँ के आंचल के झरोके से झाँक
ही जाता है,ये गुनगुनाता बचपन।।
शरारतें, अल्हड़पन,वेपरवाही,की चादर ओढ़े
अपनी भीनी भीनी मुस्कुराहट से
इस जहां मे फूलो की सी सुगन्ध
फैला ही जाता है,ये गुनगुनाता बचपन।।
अपनी तुतलाती बोलियों से
इस जहां के दिलो मे
अपनेपन का एहसास करा ही
जाता है,ये गुनगुनाता बचपन।।
अपने लड़खड़ाते कदमो से
जिज्ञासा के रथ पर सवार हो
यूँ ही आसमानों की सैर कर आता है
ये गुनगुनाता बचपन।।
चली एक तेज हवा
और उड़ा ले गयी मेरी सारी पंक्तियां
और कह गई ,मुझसे मैने सड़को पर लावारिश
पड़े भी देखा है,ये गुनगुनाता बचपन।।
डूब गयी मेरी कलम अनंत
अश्रु धारा के समुंदर मे
और कह बैठी मुझसे
काश!मे लिख पाती अपने देश के
हर बच्चे का गुनगुनाता बचपन।।
