गुम हो गए लफ्ज़
गुम हो गए लफ्ज़
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गुम हो गए लफ्ज़
शोर-शराबे की धुंध
है शांत ख़्याल यों,
पड़े किसी कोने में
है चहलकदमी कोई,
अल्फ़ाज़ की गली में
सुन्न थे जो कल तक
ओढ़ लिये लफ्ज़ को
निकल पड़े हैं और यूँ
कौतूहल से जा पहुँचे
मिलने किसी नज़्म से
नाज़ुक नज़्म घबराई
ये दर्द,इश्क़, मोहब्बत
कभी अंधेरा,रौशनी
है हमेशा नई राह,फिर
जुगनुओं के मानिंद
चमकती है राहें यों
मिलता है सुकूँ इक
खो जाते है ख़्वाब में।।