गर्मी
गर्मी
गर्मी के हालात वहाँ पर, इच्छा जहाँ सुलगती है।
रूतबे से रौंदी जाती है, पैसे से जब ठगती है
क्षमता का सम्मान नहीं होता, जब तपती दुनिया में।
सूरज का कोई ताप नहीं, इच्छा में अग्नि जगती है।
जब जब भी पैसे के आगे, दीन दुखी कमजोर पड़े।
उनसे पूछो गर्मी क्या, जिन पर नफरत का जोर पड़े।
झूठ भरी जब महफिल मे, सच्ची चीखो का शोर पड़े।
गर्मी का एहसास वहाँ, जब जब इच्छा झकझोर पड़े।
अभिमानी में मान की गर्मी , बदनामी सम्मान की गर्मी ।
गुमनामी में धाम की गर्मी , कामी में सिफॆ काम की गर्मी ।
शोहबत में आयाम की गर्मी , शोहरत में आवाम की गर्मी ।
मोहरत में तमाम की गर्मी , मोहलत में इक नाम की गर्मी ।
लोभ में लालच, गर्मी देता।
वफा में हर सच, नरमी देता।
सज्जनता, जब खो जाती है।
दुर्जन तप, बेशरमी देता।
धूप आग की गर्मी क्या, संघर्ष की गर्मी खाती है।
गर्मी तो तब बढ़ती, जब अश्रुधारा नहलाती है।
हसरत जब है साथ छोड़ती, उम्मीदें खो जाती है।
गर्मी भीषण बढ़ती है, जब गलॆफ्रेन्ड दोस्त बनाती है।
