गरीबी एक अभिशाप
गरीबी एक अभिशाप
सुबह हो गयी
दो दिन बीत गये
शरीर में मानो जान नहीं
पेट से चिपक गयी है अंतड़ियां
और उभर आई है पसलियाँ
सामने समोसे कचौड़ियां
खाते लोग दिए दिखायी
ग़रीब की भी जीभ ललचाई
झूठन में से थोड़ी सी
कचौड़ी क्या उठाई
लोगों ने कहा चोर चोर
और मार लगाई
फुटपाथ पर रोया
रोते रोते आँख लगी और सोया
सपने में एक परी आई
दूध, जलेबी, कचौड़ी, पकौड़ी भर पेट खाई
तभी आया एक चौकीदार
उसने डंडा मार जगाया
जागते ही मैं भूख से ललचाया
जाकर कूड़े का ढेर उठाया
पर उसमे भी कुछ न पाया
सारी रात मैं सो न पाया
भूख ने था बड़ा सताया
भोजन तो दूर यहाँ पानी भी मयस्सर नहीं
चलते चलते एक मस्जिद आया
नल देख मैं रुक न पाया
पर मुझे बाहर से ही भगाया
कुछ बच्चों ने मुझे
हँसी का पात्र बनाया
आगे
मन्दिर के बाहर लोगों ने मुझे
अपने पास से हटाया
वहीं सामने देखी भीड़
मैंने जाकर भंडारा खाया
तीन बार लेने पर दोबारा मुझे मिल न पाया
एक नल से गिरते पानी से
मैंने अपनी प्यास को बुझाया
पता नहीं ये सरकारी सुविधाओं का
लाभ कौन उठाता है
गरीब इंसान अस्पताल के
चक्कर काट काट
इस दुनिया से गुजर जाता है
जब भी फैलती है मीडिया में खबरें
तो उसका कारण कुपोषण
डॉक्टरों की लापरवाही नही
गर्मी, सर्दी, प्राकृतिक आपदा
फ्लू आदि बताया जाता है
पता नहीं आंगनवाड़ी का लाभ
कौन उठाता है
गरीबो का अधिकार
कौन मार जाता है
नंगे पांव कोमल पैर
तपती भूमि में झुलसती धूप में
कभी खाना ढूंढते है
मैले कुचले कपड़ो में कभी
भीख मांगते हैं कभी
लगती भी है शर्म तो
भूख के आगे लाचार हो जाते है
ये बच्चे, ये बच्चे वो है
जो कभी मैला ढोते है कभी सामान बेचते
कभी जोख़िम भरे काम करते
तो कभी ढाबों पर काम करते
हमे रास्तो पर अक्सर नजर आते है
जिनको मुद्दा बना भ्रष्ट नेता
खुद सुविधाओं का लाभ उठाते है
परंतु
सारी जिंदगी भूख मिटाने में
गुजर जाती है
इन्हें कहाँ शिक्षा कहा सहूलियत मिल पाती है
कम उम्र में बड़े शहरों में बिक जाता है
वो गरीब ही है जो जवानी में
बूढा नजर आता है
सिर्फ दो वक्त की रोटी के लिए
सारी जिंदगी बड़ी बड़ी तकलीफे उठाता है।
