गंगा मेरे शब्दों में
गंगा मेरे शब्दों में
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तट अम्रित है तेरा माँ,
घट अम्रित है तेरा माँ,
तुझे गंगा कहूँ या क्षिप्रा,
हर रंग पवित्र है तेरा माँ,
कहीं मोची चमडे़ धोता है,
कहीं पण्डित प्यास बुझाता है,
कोई अस्थियाँ बहाता है,
तो कोई स्नान कर पुण्य कमाता है,
किसी राज्य की भाषा है तू,
किसी के मन की आशा है,
आया जो तेरे दर पर,
भेजा ना बो कभी निराशा है,
कहीं कहें तुझको गंगा, यमुना,
कहीं तटुजा, सिंधु, सुजाता है,
हर जगह पर जाकर तेरा नाम अलग,
हर नाम तेरे मन भाता है।
