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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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मेरा यक़ीन, हौसला, किरदार देखकर 
मंज़िल क़रीब आ गई रफ़्तार देखकर

बेटे अलग हुए तो रोई है माँ बहुत
आँगन के बीच इक नई दीवार देखकर

हर इक ख़बर का जिस्म लहू में है तरबतर 
मैं डर गया हूँ आज का अख़बाऱ देखकर

बरसों के बाद ख़त्म हुआ बेघरी का दर्द 
दिल ख़ुश हुआ है दोस्तो घरबार देखकर

वैसे तो नाख़ुदा पे यकीं था ज़रा ज़रा
पर बढ़ गया है हौसला पतवार देखकर

इस दौर में हर चीज़ बिकाऊ है दोस्तो
बिकने लगे हैं लोग अब बाज़ार देखकर

दरिया तो चाहता था कि सबकी बुझा दे प्यास 
घबरा गया वो इतने तलबगार देखकर


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