ग़ज़ल 3
ग़ज़ल 3
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थोड़ा-सा भी नहीं था वो होशियार क्या करें,
वो बन गया क़बीले का सरदार क्या करें।
नाकामयाब लोग ही देते हैं ये दलील,
अच्छा नहीं है वक़्त का किरदार क्या करें।
जो हमसफ़र थें आप से आगे निकल गए
धीमी बहुत है आप की रफ़्तार क्या करें।
बीमार चाहते हैं कि उनको शिफ़ा मिले,
अब ख़ुद मसीहा पड़ गया बीमार क्या करें।
दो पीढ़ियों के दरमियां यूँ फ़ासले हुए,
रिश्तों के बीच आ गई दीवार क्या करें।
पुरखों की आबरू भी संभाली नहीं गई,
सर से उतर चुकी है वो दस्तार क्या करें।
सच जानने की हमको भी ख़्वाहिश तो है मगर,
सच से बहुत ही दूर हैं अख़बार क्या करें।