घरौंदा
घरौंदा
फुटपाथ पे बैठे हुए एक बच्चे ने देखा एक सपना।
क्या करे, कैसे बनाए वो भी एक घरौंदा अपना।
उसकी जिन्दगी बीत रही थी सड़क के किनारे पे।
वो अभी जी रहा था, किसी और के सहारे पे।
उसने अपने कुछ दोस्तो को बुला लिया।
लकड़ियां इकट्ठी करके, सड़क किनारे एक छोटा सा घरौंदा बना लिया।
रोज़ देर रात तक वो दोस्तों के साथ वहीं खेला करता था।
धीरे धीरे, मन में छोटे छोटे सपने बुना करता था।
मन में सोच रखा था उसने भी, किस्मत से हार नहीं मानूंगा।
कुछ भी हो जाए चाहे, अपने सपने को सवारूंगा।
धीरे धीरे द़ृढं निश्चय से कामकाज संभालने लगा।
सपने पूरे करने को अपने वो भी स्कूल जाने लगा।
सपना उसका आज भी ज्यों का त्यों था।
क्यूंकि उसके मन में खुद का एक घरौंदा बनाने का जुनूं था।
दिन रात मेहनत करके अव्वल आने लगा।
अपनी मेहनत के दम पर स्कॉलरशिप पाने लगा।
फिर एक दिन उसकी मेहनत रंग लाई।
और उसने अपनी मेहनत की पहली कमाई पाई।
अपने सपने को जीते जीते जाने वो कहां से कहां निकल गया।
उस छोटे से घरौंदे की वजह से, खुद के घरौंदे का मालिक बन गया।
सड़क किनारे छोटे से घरौंदे से उसने शुरुवात की।
किस्मत ने उसकी मेहनत से उसे सारी कायनात दी।
