घर
घर
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कीमती वस्तुएं से नहीं है सजा।
फिर भी घर मेरा अनमोल है यह बड़ा।
घर मेरा यह बना घास और फूस से।
प्रेम की नींव पर यह खड़ा है सदा।
बन के मेहमान ईश्वर है द्वारे खड़े।
क्या दिखाऊँ उन्हें क्या छुपाऊ भला।
लोग आते रहे लोग जाते रहे।
सिलसिला आने जाने का चलता रहा।
हाँ! सजाने लगा खुद का घर तो बशर।
इस जहां को नहीं घर समझ वो सका।
धर्मशाला कहे लोग दुनिया को फिर,
क्यों ये मेरा वो तेरा है कहते बता ?
