घमंडी राजा
घमंडी राजा
घमंड दौलत का हो, शोहरत का हो या अपने रूप का,
गलत राह ले जा सकता है भला नहीं करता इंसान का,
घमंड वो ज़हर है जो अंदर से हमें खोखला कर देता है,
घमंडी इंसान जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ सकता है,
ऐसी ही यह कहानी है उदयपुर के एक घमंडी राजा की,
घमंड में कहता मैं ही भरण-पोषण करता मेरी प्रजा की,
यूँ ही कहते हैं भगवान विष्णु को जगत का पालनकर्ता,
किसने देखा है उनको केवल मैं ही हूँ प्रजा का दुखहर्ता,
इस "मैं" के अहंकार ने राजा को अभिमानी बना दिया,
घमंड में खुद को अपनी प्रजा का भगवान समझ लिया,
प्रजा भी राजा के घमंड को स्वीकार कर मौन रहती थी,
घमंडी राजा को वो पालनकर्ता, भगवान समझ बैठी थी,
घमंड जब बढ़ जाता है उसका अंत करने कोई आता है,
ऐसा ही कुछ उस घमंडी राजा के नगर में घटित होता है,
एक पहुंचा हुआ संत प्रवेश करता उस राजा के नगर में,
बैठ ध्यान लगाता है वो वहीं नगर के घने वृक्ष के साये में,
सुन संत के बारे में प्रजा एक-एक कर दर्शन करने आई,
राजा ने भी उनकी प्रसिद्धि सुन मिलने की इच्छा जताई,
राजा मिलने पहुंचा योगी से पूरे नगर में था जिनका नाम,
देखा उनके पास कोई पात्र नहीं है न भोजन का माध्यम,
राजा बोला बिना पात्र भोजन की व्यवस्था कैसे होती है,
बिना किसी माध्यम के कैसे आपकी जीविका चलती है,
संत ने कहा देने वाला तो ईश्वर है वही व्यवस्था करता है,
हम फक्कड़ जीवन जीते हैं हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है,
घमंड में बोला राजा मैं तो सभी प्राणियों का अन्नदाता हूँ,
आज से आपके भोजन की व्यवस्था भी मैं ही कर देता हूँ,
राजा की घमंड भरी बातें सुन योगी ने राजा से प्रश्न किया,
संख्या बताओ उन प्राणियों की जिनका तुमने जिक्र किया,
राजा ने अनभिज्ञता ज़ाहिर की उसे कोई जानकारी नहीं है,
कैसे करते भोजन की व्यवस्था जब संख्या ही ज्ञात नहीं है,
इसका अर्थ ये हुआ उनकी व्यवस्था भी करता है भगवान,
तुम तो केवल माध्यम और खुद को देते अन्नदाता का नाम,
योगी की बातें सुनकर भी संतुष्ट ना हुआ वो घमंडी राजा,
चींटी को डिब्बे में बंद कर बोला इसे कैसे भोजन मिलेगा,
मैं भी देखता हूँ ईश्वर इस चींटी को कैसे भोजन भेजता है,
सैनिकों का पहरा बैठा कर वो राजा वहाँ से चला जाता है,
अगले दिन डब्बा खुला चींटी के पास चावल का दाना था,
डिब्बे में चावल का दाना देख घमंडी राजा बड़ा हैरान था,
बंद डिब्बे में कहां से आया भोजन किसने की है व्यवस्था,
योगी बोला देखा राजन ऊपर बैठा ईश्वर सबकी है सुनता,
कल तुम्हारे तिलक में लगा चावल का दाना डिब्बे में गिरा,
ईश्वर ने तुम्हें माध्यम बना चींटी के भोजन का प्रबंध किया,
योगी ने कहा तुम्हारे ना चाहने पर भी इसको भोजन मिला,
ऊपर ईश्वर है सभी प्राणियों का भरण -पोषण करने वाला
आपको केवल ईश्वर ने माध्यम बनाया है इसमें घमंड कैसा,
संत की बात का हुआ असर राजा ने घमंड का त्याग किया,
योगी को नम्रतापूर्वक नमन कर उसने सत्य स्वीकार किया,
समझ गया कि भगवान विष्णु ही है जगत का पालनकर्ता,
घमंड न करना खुद पर कभी इस कहानी से मिलती शिक्षा,
सब कुछ होता ईश्वर की मर्जी से केवल माध्यम हमें बनाता।
