ग़ज़ल
ग़ज़ल
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मेरी ज़िन्दगी से गर्म हवाओं की गुज़र रहती है सदा
खुला मिले मेरा दर ग़मों की नज़र रहती है सदा
चला जाऊँ कहीं नाकामियाँ चली आऐं वही
जैसे उन्हें पल पल की ख़बर रहती है सदा
रात भर तारों के संग बातें किया करता हूँ
मेरी नींद परेशानियों के घर रहती है सदा
मुद्दतों से इस उम्मीद पर जिये जा रहा हूँ
क्यों के सुना था रात ना सहर रहती है सदा
ग़म के मारों को तू भी आज़माता है क्या
क्यों मेरी दुआ बेअसर रहती है सदा