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Vivek Agarwal

Others

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Vivek Agarwal

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ग़ज़ल - कल मेरा अच्छा मुकद्दर हो न हो

ग़ज़ल - कल मेरा अच्छा मुकद्दर हो न हो

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कल मेरा अच्छा मुकद्दर हो न हो।

कौन जाने साथ पल भर हो न हो।

चल पड़े झोली उठा कर राह पर।

फ़िर सफर में साथ रहबर हो न हो।

साथ मयखाना रहे तो बात है।

रास्ते में मय मयस्सर हो न हो।

खूब महफ़िल आज लें मिलके सजा।

साथ अपने ये सुख़नवर हो न हो।

बंद कर लूँ आँख में उसकी छवि।

आज है जो कल वो दिलबर हो न हो।

इस जवानी के मज़े तुम खूब लो।

कौन जाने कल ये अवसर हो न हो।

लो सजा सपने सुहाने ख्वाब में। 

खूबसूरत सा ये मंज़र हो न हो।

आज ही कर दो हमारा क़त्ल तुम।

फिर तुम्हारे पास खंजर हो न हो।

जब नया हो कर्मचारी दाब दो।

कल पता क्या आपका डर हो न हो।

खींच लो तस्वीर अपनी साथ में।

राह में फ़िर ये समंदर हो न हो।

सोच कर वादे किया कर याद रख।

क्या पता पूरी क़सम हर हो न हो।

मंदिरों का हो गया है अब समय।

देर की दर्शन मनोहर हो न हो।

सुबह को 'अवि' झांकता है प्यार से।

शाम को बादल की चादर हो न हो।


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