ग़ज़ल - अपना फ़साना
ग़ज़ल - अपना फ़साना
तुझे ख्वाब में अब बुलाना नहीं है।
अभी रात को यूँ जगाना नहीं है।
बहुत याद आयी हमें आज तेरी।
बिछड़ने का किस्सा पुराना नहीं है।
नहीं जानते वो मिरे दिल में क्या है।
हमारी तड़प का ठिकाना नहीं है।
तुझे याद करके बहुत रो लिया हूँ।
हमें और आँसू बहाना नहीं है।
जिगर में रखी हैँ हजारों निशानी।
हमारा अभी आशियाना नहीं है।
नहीं मांगता हूँ मैं तुझको खुदा से।
उसे इस तरह आजमाना नहीं है।
पता पूछना क्यूँ अभी उस गली का।
हमें जिस गली आज जाना नहीं है।
चलें बरछियाँ हैँ निगाहों से उनकी।
मगर अब हमारा निशाना नहीं है।
कहानी सुनाना हमें खूब आता।
मगर चुप हूँ अपना फसाना नहीं है।
