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Aliya Firdous

Others

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Aliya Firdous

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ग़ुम है मिठास

ग़ुम है मिठास

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कुछ ग़ुम सी लगती है आज कविताओं में मिठास, 

पता नहीं किस चाशनी से लिखा करते थे ग़ालिब और गुलज़ार, 

लगता है जब वो लिखते होंगे, बैठ के चाँदनी रात में, 

चाँद उतर आती होगी उनके किताब में, 

मोहब्बत को कुछ यूँ लिखते थे वो मानो सामने मुमताज़ हो, 

बयाँ करने का क्या अंदाज़ था , लगता है मानो अल्फ़ाज़ों से ही प्यार था उनको, 

दर्द को भी कुछ लिखा है यूँ, जैसे दर्द से कोई गहरा रिश्ता हो, 

जिस लफ्ज़ को कागज़ पर लिखते होंगे,उस कागज़ पर रूह भर आती होगी, 

पता नहीं कहाँ ग़ुम हो गई वो हिंदी -उर्दू की मिठास, 

या शायद अब वो चाशनी मिलती ही ना हो यूँ खुले बाजार। 

     


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